Tuesday, September 18, 2018

आरएसएस के कार्यक्रम के पीछे संघ प्रमुख भागवत की सोच क्या है

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आएसएस) को अपनी स्थापना के वक्त के से ही इस बात पर यक़ीन रहा है कि राजनीति और राजनीतिक गतिविधियां ही अंतिम लक्ष्य नहीं हैं.
हालांकि, यह विडंबना है कि आरएसएस ने सबसे अधिक वहीं अपना ध्यान केंद्रित किया जहां बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार रही या जहां बीजेपी का प्रभुत्व बढ़ता जाता है. जबकि आरएसएस कहती रही है कि बीजेपी उसका कोई राजनीतिक धड़ा नहीं है.
93 साल पहले बनी आरएसएस यह भी कहती रही है कि 1980 में अस्तित्व में आई बीजेपी उसका राजनीतिक संगठन नहीं है. लेकिन ऐसा माना जाता है कि दोनों ही संगठनों का भाग्य एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है.
आरएसएस पर प्रतिबंध के बाद जब बिना शर्त उसे हटा लिया गया तब 1 अगस्त 1949 को उसने अपना संविधान अपनाया. इसमें कहा गया है कि वह राजनीति से अलग है और केवल सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों से संबंधित गतिविधियों के लिए समर्पित है.
हालांकि आरएसएस के स्वयंसेवक विदेशी ताकतों के प्रति निष्ठा रखने वाले या हिंसा का सहारा लेने वाले या अपना मक़सद साधने के लिए प्रतिबंधित साधनों का इस्तेमाल करने वाले संगठनों को छोड़कर किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने या किसी भी संस्थान के साथ काम करने के लिए स्वतंत्र हैं.
देश को दु:खद बंटवारे की ओर ले जाने वाली घटनाओं की ओर देखें तो इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, कम्युनिस्ट और देश के दूसरे संगठनों ने 'फूट डालो, राज करो' की ब्रितानी नीति के मकसद को पूरा किया. आरएसएस ने तार्किक और स्वाभाविक से लगने वाले ऐसे संगठनों के साथ अपने सदस्यों के संबंध रखने को प्रतिबंधित करने का प्रावधान रखा है.
भारत में वामपंथी पार्टी और वाम आंदोलनों से जुड़े नेताओं ने कभी भी कांग्रेस, महात्मा गांधी और उनके स्वाधीनता संग्राम के धार्मिक रुख के प्रति अपनी नफ़रत को नहीं छुपाया.
साल 1934 से वामपंथी पार्टी ने 'गांधी बायकॉट कमेटी' बनाकर महात्मा गाँधी के ख़िलाफ़ एक अभियान चलाया. इसके बाद इसे एक राजनीतिक मोर्चे 'लीग अगेंस्ट गांधीज़्म' में बदल दिया गया.
वामपंथियों ने महात्मा गांधी पर अंग्रेज़ों के प्रति नरम रुख़ अपनाने का आरोप लगाया.
इसके साथ ही महात्मा गांधी पर ये आरोप लगाया गया कि उन्होंने कामगार और कृषक वर्ग के हितों के साथ समझौता किया और साम्राज्यवादियों के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाने में धर्म का इस्तेमाल किया.
वामपंथियों द्वारा अनैतिकता और हिंसा की परिभाषा पर महात्मा गांधी ने अपनी ओर से दुख ज़ाहिर किया था - ["कई ईमानदार कांग्रेसी कई प्रांतों से मेरे पास आए या उन्होंने लिखा कि वामपंथियों के पास अपनी पार्टी को जीवित रखने के लिए कोई सिद्धांत नहीं है और उनके हाथ में जो आता है उससे वह अपने विरोधियों को पीटते हैं." (पत्र नं.721, पेज नं. 413)] लगभग हर दिन कांग्रेसियों द्वारा मेरे कानों में ये ख़बरें पड़ रही हैं कि (कम्युनिस्ट) पार्टी अपनी कार्य पद्धति में अनैतिक है और यहां तक की हिंसा का सहारा आरएसएस ने महात्मा गांधी से प्रेरणा लेकर अपने संगठन को अहिंसा के सिद्धांत पर खड़ा किया है और हिंदू समाज के धार्मिक स्वभाव को मान्यता दी है.
गांधी की तरह ही आरएसएस के संस्थापक डॉक्टर के. बी. हेडगेवार भी मानते थे कि हिंदुओं को जाति और दूसरी पहचानों से ऊपर उठकर हिंदू के रूप में एकजुट होना पड़ेगा.
जाति, भाषा और क्षेत्रीय पहचान को चुनौती दिए बिना इनकी जगह 'हिंदू पहचान' को महत्व देने का फ़ैसला रणनीतिक रूप से आरएसएस की गतिविधियों में शामिल किया गया. ऐसी रोजाना की गतिविधियों को ही शाखा कहा गया.
आज देश में आरएसएस की 50 हज़ार से अधिक दैनिक सभाएं (शाखा) होती हैं. इसके साथ ही अन्य सामूहिक बैठकों के अलावा 30 हज़ार साप्ताहिक बैठकें होती हैं. इन बैठकों में लगभग दस लाख लोग शामिल होते हैं. ये लोग एक समान विचारों के साथ आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं.
इन सबके अलावा आरएसएस ने उन हज़ारों नागरिकों को प्रेरित किया है जिन्होंने ग्रामीण, आदिवासी, विज्ञान और तकनीक से लेकर लगभग हर क्षेत्र में ग़ैर-सरकारी संगठन खड़े किए हैं. इन्होंने उस दृढ़ विश्वास को अपने साथ रखा है कि समाज की हर समस्या का समाधान मौजूद है और प्रत्येक व्यक्ति के पास कुछ न कुछ समाधान है.
आरएसएस ने भारत के अलावा विदेशों में भी अपने नेटवर्क को फैलाया है और 100 से अधिक देशों में इसकी मौजूदगी है. आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व लगातार इन जगहों का दौरा करता है और प्रवासियों के हालात का जायज़ा लेते हुए उन्हें प्रेरित करता है कि सकारात्मक रूप से वेदों के अनुसार वे उस देश के साथ-साथ अपनी मातृभूमि में सच्ची भावना से योगदान दें.

Tuesday, September 11, 2018

राज्य पेट्रोल में 3.20, डीजल में 2.30 रुपए कम करें तो भी उन्हें घाटा नहीं: एसबीआई की रिपोर्ट

ई दिल्ली. पेट्रोल-डीजल के दाम रोजाना बढ़ने से जनता परेशान है। लेकिन, राज्य सरकारों का मुनाफा बढ़ रहा है। एसबीआई की रिसर्च के मुताबिक कीमतें बढ़ने से 19 प्रमुख राज्यों को 2018-19 में 22,702 करोड़ रुपए की अतिरिक्त कमाई होगी। यह आकलन साल में कच्चे तेल की औसत कीमत 75 डॉलर बैरल और डॉलर का मूल्य 72 रुपए मान कर किया गया।एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य पेट्रोल के दाम औसत 3.20 रुपए और डीजल के 2.30 रुपए घटा दें, तब भी रेवेन्यू उनके बजट अनुमान के बराबर रहेगा। राज्य पेट्रोल-डीजल की कीमत और डीलर कमीशन पर वैट वसूलते हैं। जिन 19 राज्यों पर रिसर्च है, वहां पेट्रोल पर वैट 24% से 39% तक और डीजल पर 17% से 28% तक है। कीमत बढ़ने के साथ वैट के रूप में वसूली बढ़ने से राज्यों की कमाई भी बढ़ जाती है। 2017-18 में वैट से राज्यों को 1.84 लाख करोड़ रुपए मिले।   
केंद्र की एक्साइज ड्यूटी फिक्स होती है। अभी पेट्रोल पर यह 19.48 रुपए और डीजल पर 15.33 रुपए प्रति लीटर है। पश्चिम बंगाल ने मंगलवार को राज्य में पेट्रोल-डीजल की कीमत एक रुपए घटा दी। आंध्रप्रदेश ने सोमवार को 2 रुपए घटाए थे। राजस्थान ने रविवार को वैट 4% कम कर दिया था। के नारे 2019 से पहले ही दामन से लिपट जाएंगे यह न तो नरेन्द्र मोदी ने सोचा होगा न ही 2014 में पहली बार खुलकर राजनीतिक तौर पर सक्रिय हुए सर संघचालक मोहन भागवत ने सोचा होगा। न ही भ्रष्ट्राचार और घोटालों के आरोपों को झेलते हुए सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस ने सोचा होगा। न ही उम्मीद और भरोसे की कुलांचे मारती उस जनता ने सोचा होगा, जिसके जनादेश ने भारतीय राजनीति को ही कुछ ऐसा मथ दिया कि अब पारम्परिक राजनीति की लीक पर लौटना किसी के लिए संभव ही नहीं है।
2013-14 में कोई मुद्‌दा छूटा नहीं था। महिला, दलित, मुस्लिम, महंगाई, किसान, मजदूर, आतंकवाद, कश्मीर, पाकिस्तान, चीन, डॉलर, सीबीआई, बेरोजगारी, भ्रष्ट्राचार और अगली लाइन अबकी बार मोदी सरकार। तो 60 में से 52 महीने गुजर गए और बचे 8 महीने की जद्‌दोजहद में पहली बार पार्टियां छोटी पड़ गईं और ‘भारत’ ही सामने आ खड़ा हो गया। सत्ता ने कहा ‘अजेय भारत, अटल भाजपा’ तो विपक्ष बोला ‘मोदी बनाम इंडिया।’ यानी दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश को चलाने, संभालने या कहें सत्ता भोगने को तैयार राजनीति के पास कोई विज़न नहीं है कि भारत होना कैसा चाहिए।

कैसे उन मुद्‌दों से निजात मिलेगी जिन मुद्‌दों का जिक्र कर 2014 में गद्‌दी पलट गई। या फिर उन्हीं मुद्‌दों का जिक्र कर गद्‌दी पाने की तैयारी है। अजेय भारत में 2019 भी सत्ता हस्तांतरण की दिशा में जा रहा है, जैसे 2014 गया था। जैसे इमरजेंसी के बाद इंदिरा की गद्‌दी को जनता ने यह सोचकर पलट दिया था कि अब जनता सरकार आ गई, तो नए सपने, नई उम्मीदों को पाला जा सकता है। अतीत के इन पन्नों पर गौर जरूर करें, क्योंकि इसी के अक्स तले ‘अजेय भारत’ का राज छिपा है।

आपातकाल में जेपी की अगुवाई में संघ के स्वयंसेवकों का संघर्ष रंग लाया। देशभर के छात्र-युवा आंदोलन से जुड़े। 1977 में जीत होने की खुफिया रिपोर्ट के आधार पर चुनाव कराने के लिए इंदिरा गांधी तैयार हो गईं और अजेय भारत का सपना पाले जनता ने उन्हें धूल चटा दी। जनता सरकार को 54.43 फीसदी वोट मिले। 295 सीटों (गठबंधन ने 345 सीटों) पर जीत हासिल की, जबकि इंदिरा गांधी को सिर्फ 154 सीटों (28.41% वोट) पर जीत मिली, लेकिन ढाई बरस के भीतर ही जनता के सपने कुछ इस तरह चूर हुए कि 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी की वापसी ही नहीं हुई, बल्कि जीत ऐतिहासिक रही और इंदिरा गांधी को 353 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस को रिकॉर्ड तोड़ 66.73 फीसदी वोट मिले। लेकिन सत्ता मिली तो हुआ क्या।
बेरोजगार के लिए रोजगार नहीं था। कॉलेज छोड़कर निकले छात्रों के लिए डिग्री या शिक्षा तक की व्यवस्था नहीं थी। महंगाई थमी नहीं। भ्रष्ट्राचार खत्म करने के नारे ही ढाई बरस तक लगते रहे। सत्ता के भीतर ही सत्ता के सत्ताधारियों का टकराव इस चरम पर भी पहुंचा कि 1979 में अटल बिहारी वाजपेयी पटना के कदमकुआं स्थित जयप्रकाश नारायण के घर पर उनसे मिलने पहुंचे। वाजपेयी दिल्ली से सटे सूरजकुंड में होने वाली जनता पार्टी संसदीय दल की बैठक को लेकर दिशा-निर्देश लेने के बाद जेपी के घर से सीढ़ियों से उतरने लगे तो पत्रकारों ने सवाल पूछा, बातचीत में क्या निकला। वाजपेयी ने अपने अंदाज में जवाब दिया, ‘उधर कुंड (सूरजकुंड), इधर कुआं (कदमकुआं) बीच में धुआं ही धुआं।’

अजेय भारत का सच यही है कि हर सत्ता परिवर्तन के बाद सिवाय धुएं के कुछ नज़र नहीं आता। यानी 1977 में जिस सरकार के पास जनादेश की ताकत थी। उस सरकार के पास भी अजेय भारत का कोई सपना नहीं था। हां, फॉर्जरी-घोटाले और कालेधन पर रोक के लिए नोटबंदी का फैसला तब भी लिया गया। 16 जनवरी 1978 को मोरारजी सरकार ने हजार, पांच हजार और दस हजार के नोट उसी रात से बंद कर दिए। उसी सच को प्रधानमंत्री मोदी ने 38 बरस बाद 8 नवंबर, 2016 को दोहराया। एलान कर दिया कि अब कालेधन, आतंकवाद, फॉर्जरी-घपले पर रोक लग जाएगी पर बदला क्या?

फिर भी सत्ता ने खुद की सत्ता बरकरार रखने के लिए अपने को ‘अजेय भारत’ से जोड़ा और जीत के गुणा भाग में फंसे विपक्ष ने ‘मोदी बनाम देश’ कहकर उस सोच से पल्ला झाड़ लिया कि आखिर न्यूनतम की लड़ाई लड़ते-लड़ते देश की सत्ता तो लोकतंत्र को ही हड़प रही है और अजेय भारत इसी का अभ्यस्त हो चला है कि चुनाव लोकतंत्र है। जनादेश लोकतंत्र है। सत्ता लोकतंत्र है। अजेय भारत की राजधानी दिल्ली में भूख से मौत पर संसद-सत्ता को शर्म नहीं आती। उच्च शिक्षा के लिए हजारों छात्र देश छोड़ दें तो भी असर नहीं पड़ता।

बीते तीन बरस में सवा लाख बच्चों को पढ़ने के लिए वीज़ा दिया गया, ताल ठोककर लोकसभा में मंत्री ही बताते हैं। इलाज बिना मौत की बढ़ती संख्या भी मरने के बाद मिलने वाली रकम से राहत दे देगी, इसका एलान गरीबों के लिए इंश्योरेंस के साथ दुनिया की सबसे बड़ी राहत के तौर पर प्रधानमंत्री ही करते हैं। ये सब इसलिए, क्योंकि अजेय भारत का मतलब सत्ता और विपक्ष की परिभाषा तले सत्ता न गंवाना या सत्ता पाना है।

सत्ता बेफिक्र है कि उसने देश के तमाम संवैधानिक संस्थानों को खत्म कर दिया। सत्ता मानकर बैठी है  कि पांच बरस की जीत का मतलब न्यायपालिका उसके निर्णयों के अनुकूल फैसला दे। चुनाव आयोग सत्तानुकुल होकर काम करे। सीबीआई, ईडी, आईटी, सीवीसी, सीआईसी, सीएजी के अधिकारी विरोध करने वालों की नींद हराम कर दें।  2014 से निकलकर 2018 तक आते आते जब अजेय भारत का सपना 2019 के चुनाव में जा छुपा है तो अब समझना यह भी होगा कि 2019 का चुनाव या उसके बाद के हालात पारम्परिक राजनीति के नहीं होंगे।

भाजपा अध्यक्ष ने अपनी पार्टी के सांसदों को  झूठ नहीं कहा कि 2019 जीत गए तो 50 बरस तक राज करेंगे और संसद में कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी झूठ नहीं कहा कि नरेन्द्र मोदी-अमित शाह जानते हैं कि चुनाव हार गए तो उनके साथ क्या कुछ हो सकता है। इसलिए ये हर हाल में चुनाव जीतना चाहते हैं तो आखिर में सिर्फ यही नारा लगाइए, अबकी बार...आज़ादी की दरकार।

Thursday, September 6, 2018

अमेरिकी अफसर ने लिखा- ट्रम्प के फैसले देश के लिए नुकसानदेह, व्हाइट हाउस ने कहा- कायराना हरकत

वॉशिंगटन.   एक अमेरिकी अफसर ने गुरुवार को कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले देश के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन में मौजूदा अफसर ने न्यूयॉर्क टाइम्स में 'आई एम पार्ट ऑफ रेजिस्टेंस इनसाइड द ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन' नाम से लेख लिखा है। अफसर के नाम का खुलासा नहीं किया गया है। अखबार में अफसर द्वारा लिखे आर्टिकल को व्हाइट हाउस ने कायराना हरकत करार दिया है।
'लोकतांत्रिक संस्थाएं कैसे बचाएंगे' : अफसर ने कहा, "हम एडमिनिस्ट्रेशन को कामयाब होते देखना चाहते हैं। पहले से हमारी नीतियां अमेरिका को सुरक्षित और समृद्ध बनाए हुए हैं। हमें सबसे पहले देश के लिए काम करना है, न कि किसी व्यक्ति के लिए। ट्रम्प द्वारा नियुक्त किए गए लोग कैसे हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचाएंगे जबकि वे उनकी नीतियों को ही लागू कर रहे हैं। यह सब ट्रम्प के व्हाइट हाउस में रहने तक जारी रहेगा।''
'तानाशाहों को पसंद करते हैं ट्रम्प' : अफसर ने आरोप लगाया, "ट्रम्प अपने निजी और सार्वजनिक जिंदगी में व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग उन जैसे खुद के नियम बनाने वाले शासकों को तरजीह देते हैं। ट्रम्प बतौर रिपब्लिकन प्रेसिडेंट चुने गए थे लेकिन वे कंजरवेटिव के ज्यादा करीब लगते हैं। वे खुला दिमाग, खुला बाजार और आजाद लोग चाहते हैं।''
'सारे आरोप गलत' : लेख पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्रम्प ने कहा, "जिस अनाम अफसर ने आर्टिकल लिखा, उसने सब गलत कारण गिनाए। न्यूयॉर्क टाइम्स नाकाम हो रहा है। अगर मैं नहीं यहां नहीं रहूंगा तो एनवाईटी भी नहीं रहेगा। मैं फेल हो रहे न्यूयॉर्क टाइम्स से कहना चाहता हूं कि जिसके बारे में अखबार लिख रहा है वह प्रशासन में प्रतिरोध का हिस्सा है। हमें इसी से निपटना है।'' व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी सारा सेंडर्स ने कहा, "अफसर ने देश को नहीं बल्कि खुद को और अपने अहम को ऊपर रखा। ऐसे व्यक्ति को खुद इस्तीफा दे देना चाहिए। अफसर के खिलाफ निर्णायक फैसला होगा।"
वॉशिंगटन.   एक अमेरिकी अफसर ने गुरुवार को कहा कि डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले देश के लिए नुकसानदेह साबित हो सकते हैं। ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन में मौजूदा अफसर ने न्यूयॉर्क टाइम्स में 'आई एम पार्ट ऑफ रेजिस्टेंस इनसाइड द ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन' नाम से लेख लिखा है। अफसर के नाम का खुलासा नहीं किया गया है। अखबार में अफसर द्वारा लिखे आर्टिकल को व्हाइट हाउस ने कायराना हरकत करार दिया है।
'लोकतांत्रिक संस्थाएं कैसे बचाएंगे' : अफसर ने कहा, "हम एडमिनिस्ट्रेशन को कामयाब होते देखना चाहते हैं। पहले से हमारी नीतियां अमेरिका को सुरक्षित और समृद्ध बनाए हुए हैं। हमें सबसे पहले देश के लिए काम करना है, न कि किसी व्यक्ति के लिए। ट्रम्प द्वारा नियुक्त किए गए लोग कैसे हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को बचाएंगे जबकि वे उनकी नीतियों को ही लागू कर रहे हैं। यह सब ट्रम्प के व्हाइट हाउस में रहने तक जारी रहेगा।''
'तानाशाहों को पसंद करते हैं ट्रम्प' : अफसर ने आरोप लगाया, "ट्रम्प अपने निजी और सार्वजनिक जिंदगी में व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग उन जैसे खुद के नियम बनाने वाले शासकों को तरजीह देते हैं। ट्रम्प बतौर रिपब्लिकन प्रेसिडेंट चुने गए थे लेकिन वे कंजरवेटिव के ज्यादा करीब लगते हैं। वे खुला दिमाग, खुला बाजार और आजाद लोग चाहते हैं।''
'सारे आरोप गलत' : लेख पर प्रतिक्रिया देते हुए ट्रम्प ने कहा, "जिस अनाम अफसर ने आर्टिकल लिखा, उसने सब गलत कारण गिनाए। न्यूयॉर्क टाइम्स नाकाम हो रहा है। अगर मैं नहीं यहां नहीं रहूंगा तो एनवाईटी भी नहीं रहेगा। मैं फेल हो रहे न्यूयॉर्क टाइम्स से कहना चाहता हूं कि जिसके बारे में अखबार लिख रहा है वह प्रशासन में प्रतिरोध का हिस्सा है। हमें इसी से निपटना है।'' व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी सारा सेंडर्स ने कहा, "अफसर ने देश को नहीं बल्कि खुद को और अपने अहम को ऊपर रखा। ऐसे व्यक्ति को खुद इस्तीफा दे देना चाहिए। अफसर के खिलाफ निर्णायक फैसला होगा।"पकी जिंदगी से जुड़े खास पलों की यादों को आप हमेशा के लिए सहेज सकते हैं। इसके लिए दैनिक भास्कर ‘एक पेड़ एक जिंदगी’ अभियान के तहत एक नई सोच लाया है। जिंदगी में ऐसे कई पल आते हैं, जो हमारे लिए बहुत खास होते हैं, जिंदगी को नए मायने देते हैं। इन पलों की यादों को हमेशा ताजा रखने के लिए आप भास्कर के अभियान ‘एक पेड़ एक जिंदगी’ से जुड़ सकते हैं। आपके साथ धीरे-धीरे यह पौधा भी बड़ा होगा और बरसों तक आपके उन खास पलों की यादों को जिंदा रखेगा। उस बढ़ते हुए पौधे से पर्यावरण को ऑक्सीजन के रूप में मिलने वाली सांसों से आपकी खास यादें हमेशा के लिए जुड़ जाएंगी। पौधे से आशय यह नहीं है कि आपको सिर्फ पौधा ही लगाना है। हम बीज बोकर भी पौधे को जन्म दे सकते हैं। तो आइए एक पेड़ जिंदगी के खास पलों के नाम लगाएं, ताकि इन खास पलों की यादें भी बढ़ती जाएं

Tuesday, September 4, 2018

最新世界环境资讯

社,1000多头食用了放射元素铯污染饲料的肉牛被运往全国各地,遍及福岛和其它区。在经过日本福岛第一核电站辐射外泄后一系列受污染蔬菜、海产品的事件后,日本消费者对食品的安全愈加提心吊胆。

法新社报道了两个新的发现,因受到气候系统的长期恶性循环的影响下,土壤和海洋缓冲气候变暖的能力正被削弱。 如果大海和陆地在吸收和存储温室气体的能力下降,更多的气体排放将会近入大气层,而更多的太阳热量会被控制。

据《卫报》,前英国首席科学家大卫金声称, 世界应放弃京都议定书,应采用一个各国以人口为基数的碳排放配额系统。金攻击了全球气候对话的部分原则,他说由于缺乏具有法律约束力的国际协定,实用主义是必要的。

观察家报》报道,新地质研究发现南极地区正在对地球的未来造成影响。钻井工程和卫星调查显示,前热带大陆(及整个地球)的最近地理变化是由于大气中二氧化碳的波动而导致的温度上升的影响。

卫报》报道,引发争议的跨太平、大西洋公路将于本月底完工。 这条跨洋公路全长2600公里,连接巴西的大西洋海岸和秘鲁的太平洋港口,便于与中国的贸易。环保人士、社会积极人士和保安部队均担心这条途经亚马逊丛林和冰川的公路会引发诸多社会问题。

美联社报道,美国德州通过法案要求所有采用水力压裂技术钻探天然气的公司披露试压中使用的化学品。水力压裂技术近年引起环保争议,而美国德州首个在美颁布这项法案。

经济学家》报道,对于是否采用水力压裂技术钻探其庞大的页岩气储量,波兰政府持开放态度。全球十多家公司已表明可于未来数年钻探多达120口实验井。开采页岩气有助波兰减少对煤炭的严重依赖。

环境新闻网,在一定趋势下,全球的磷酸盐有可能会用竭。磷酸盐广泛用于化肥中,以提高农作物产量。全球磷研究计划组织的科学家们说,随着世界粮食产量的增加,全球“磷肥峰值”可能会在2030年到达。

世界观察研究所,2010年全球汽车行业的制造和销售猛增。前四名生产国为 中国、日本、美国和德国,占全球产量的53%。目前全世界估计有6亿6900万辆汽车。

  路透社援引日本共同社,1000多头食用了放射元素铯污染饲料的肉牛被运往全国各地,遍及福岛和其它区。在经过日本福岛第一核电站辐射外泄后一系列受污染蔬菜、海产品的事件后,日本消费者对食品的安全愈加提心吊胆。

法新社报道了两个新的发现,因受到气候系统的长期恶性循环的影响下,土壤和海洋缓冲气候变暖的能力正被削弱。 如果大海和陆地在吸收和存储温室气体的能力下降,更多的气体排放将会近入大气层,而更多的太阳热量会被控制。

据《卫报》,前英国首席科学家大卫金声称, 世界应放弃京都议定书,应采用一个各国以人口为基数的碳排放配额系统。金攻击了全球气候对话的部分原则,他说由于缺乏具有法律约束力的国际协定,实用主义是必要的。

观察家报》报道,新地质研究发现南极地区正在对地球的未来造成影响。钻井工程和卫星调查显示,前热带大陆(及整个地球)的最近地理变化是由于大气中二氧化碳的波动而导致的温度上升的影响。

卫报》报道,引发争议的跨太平、大西洋公路将于本月底完工。 这条跨洋公路全长2600公里,连接巴西的大西洋海岸和秘鲁的太平洋港口,便于与中国的贸易。环保人士、社会积极人士和保安部队均担心这条途经亚马逊丛林和冰川的公路会引发诸多社会问题。

美联社报道,美国德州通过法案要求所有采用水力压裂技术钻探天然气的公司披露试压中使用的化学品。水力压裂技术近年引起环保争议,而美国德州首个在美颁布这项法案。

经济学家》报道,对于是否采用水力压裂技术钻探其庞大的页岩气储量,波兰政府持开放态度。全球十多家公司已表明可于未来数年钻探多达120口实验井。开采页岩气有助波兰减少对煤炭的严重依赖。

环境新闻网,在一定趋势下,全球的磷酸盐有可能会用竭。磷酸盐广泛用于化肥中,以提高农作物产量。全球磷研究计划组织的科学家们说,随着世界粮食产量的增加,全球“磷肥峰值”可能会在2030年到达。

世界观察研究所,2010年全球汽车行业的制造和销售猛增。前四名生产国为 中国、日本、美国和德国,占全球产量的53%。目前全世界估计有6亿6900万辆汽车。