पाकिस्तान ने ज़रूर इस प्रस्ताव का स्वागत किया है लेकिन ये जो प्रस्ताव है उस पर वॉशिंगटन की ओर से स्पष्टीकरण आ रहे हैं. उन्होंने कहा है कि हम जानते हैं कि ये एक द्विपक्षीय मुद्दा है और हम इस मामले में सहायता करने
को तैयार हैं लेकिन ये एक द्विपक्षीय मुद्दा है.
इसके बाद अमरीकी
कांग्रेस के सदस्यों की ओर से स्पष्टीकरण आए हैं. हाउस की फॉरेन अफेयर्स
कमेटी के हेड ने हमारे राजदूत से बात करके स्पष्ट किया है कि इस मुद्दे को
लेकर अमरीकी नीति में कोई बदलाव नहीं है.
क्या कश्मीर मुद्दे की जटिलताओं से अनभिज्ञ हैं ट्रंप?
उनके काम करने के तरीक़े को देखते हुए, ये लगता है कि वह संभवतः इस
मुद्दे की जटिलताओं से परिचित नहीं थे. ऐसे में उनसे ये ग़लती हुई. इसके
बाद भारत की ओर से विदेश मंत्री ने बिलकुल सही तरीक़े से इस मसले पर अपनी
ओर से स्पष्टीकरण दिया है."
ट्रंप के इस बयान से दोनों देशों के संबंधों को जो चोट पहुंचनी थी, वह
पहुंच चुकी है. इसके बाद अब वह इस मसले को पीछे छोड़ते हुए संबंधों को
बेहतर बनाने की कोशिश करेंगे.
दोनों देशों के बीच आपस में इतने
प्रगाढ़ रिश्ते हैं कि भारत कई मामलों में अमरीका का रणनीतिक साझेदार है.
लेकिन ये जो बयान दिया गया है, उसमें दोनों देशों के संबंधों को क्षति
पहुंचाने का दम है.
इससे अमरीकी सरकार को नुक़सान होगा. दोनों देशों
के बीच रक्षा से लेकर रणनीतिक साझेदारी तक है. इंडो-पैसिफिक में दोनों
देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी है. ऐसे में ये मसला संबंधों को नुक़सान पहुंचा सकता है लेकिन ऐसा होने नहीं दिया जाएगा.
ये
सौ फीसदी संभव है क्योंकि राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का जो व्यक्तित्व है,
जो उनका काम करने का तरीक़ा है, वो हमें यही बताता है कि ज़्यादा ब्रीफ़िंग
आदि में यक़ीन नहीं रखते हैं. वो मोटी-मोटी बात करते हैं. उनका ये मानना
रहता है कि वो हर मीटिंग में देश-विदेश के मुद्दों को अपने स्तर पर संभाल
लेंगे.
ये बात सही है कि पाकिस्तान को लेकर अमरीकी रुख़ कड़ा रहा है. इसके बाद भी इमरान ख़ान अमरीका पहुंचे और ट्रंप ने उनका स्वागत किया है.
लेकिन
अगर इस मुलाक़ात के बाद अमरीकी प्रशासन की ओर से जारी हुई फैक्टशीट पर
नज़र डालें तो पता चलता है कि अमरीका अब भी आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान से सख़्त क़दम उठाने की मांग कर रहा है.
ये बात लंबे समय से कही जा रही है कि भारत इसे लेकर बातचीत के लिए तैयार
है लेकिन भारत की शर्त सिर्फ़ यही है कि सीमा पार से आतंकी गतिविधियों को
बंद किया जाए.
लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. अब दुनिया भर के देश और वित्तीय संस्थान ये मान रहे हैं कि पाकिस्तान ऐसी गतिविधियों में
संलिप्त है. ऐेसे में इस बात की बिलकुल गुंजाइश नहीं है कि इस मुद्दे के
निबटारे के लिए किसी तीसरे पक्ष की मदद ली जा सके.
( नवतेज सरना से बातचीत पर आधारित. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)